Solar Panel काम कैसे करता है
इस आर्टिकल में जांनेंगे कि सोलर सेल या फोटो वोल्टेज से बिजली कैसे उत्पन्न करती है पिछले 20 सालो मे पूरे विश्व की ऊर्जा अपूर्ति में सौर ऊर्जाका योगदान काफी बढ़ गया है धरती पर सूरज कि ऊर्जा सबसे प्रचुर और मुफ्त में उपलब्ध होने वाली ऊर्जा है इस ऊर्जा उपयोग करने के लिए हमे धरती पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने वाले एक और तत्व कि मदद लेनी पडती है
बालू ( रेत ) का सोलर सेल में प्रयोग करने के लिए उसे 99.999%शुद्ध सिलिकॉन करिस्टल में बदलना पड़ता है ऐसा करने के लिए बालू को एक जटिल शुद्धकरण ( पैयूरिफिकेशन ) से गुजरना पड़ता है प्राकृतिक सिलिकॉन को गैसिय सिलिकॉन कि ग्रुप में बदला जाता है
फिर उच्च शुद्धता वाले पॉली polycrystline सिलिकॉन को प्राप्त करने के लिए इसे hydrogen के साथ मिलाया जाता है सिलिकॉन कि इन टुकड़ों को फिर से आकार दिया जाता है और बहुत ही पतले पट्टी फको में बदल दिया जाता है जिसे सिलिकॉन वैफेल्स कहते है सिलिकॉन वैफेल्स फोटो वेलटीक सेल्क के ह्रदय कि तरह होते है जब हम सिलिकॉन के अणुओ का का विश्लेषण करते है तो आप देख सकते है कि वे आपस में जुड़े हुए होते है जब आप किसी के साथ जुड़ जाते है तो आप अपनी आजादी खो देते है उसी तरह सिलोकॉन कि संरचना में इलेक्ट्रान कि गति लड़ने के लिए स्वतंत्र नहीं होते है
मान लेते हैँ कि 5 संयोजक वाले फसफोरास अणुओ को इंजेक्ट किया गया है यहाँ एक इलेक्ट्रान गति करने के लिए स्वतंत्र है इस संरचना में इलेक्ट्रॉन पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त कर लेते है तो वे मुक्त रूप से गति कर सकते आइये इस प्रकार कि सामग्री का उपयोग करके एक बहुत ही आसान सोलर सेल बनाने कि कोशिश करते है जब इस पर प्रकाश पड़ेगा तो इन इलेक्ट्रान को फोटॉन ऊर्जा मिल जाएगी और वे गति करने के लिए सावतंत्र हो जाएंगे लेकिन इलेक्ट्रान कि ये गति अव्वस्ती होती है ये लोड के माध्यम से किसी करेंट में परिवर्तत नहीं होती है इलेक्ट्रान कि एक समान दिशा में गति के लिए एक driving force कि जरुरत होती है driving force पैदा करने का एक आसान और व्यवहारिक तरीका p-n junction है आइये देखते है कि p-n jun driving force कैसे पैदा करता है N type डोपेन तरह ही आप शुद्ध सिलिकॉन में बोरौन के तीन संयोजक वाले इलेक्ट्रान इंजेक्ट करेंगे तो हर एक अणु में छिद्र हो जाएगा इसे p type डोपेन कहते है अगर इन दो type कि मिश्रित सामग्री को जोड़ते है तो N कि ओर कुछ इलेक्ट्रान P कि क्षेत्र में चले जाऐंगे और वहा पर उपलब्ध छिद्रो को भर देंगे इस तरह एक dipletion Region / रिक्त क्षेत्र बन जाएगा, जहाँ पर कोई भी मुक्त इलेक्ट्रान या छिद्र नहीं होगा इलेक्ट्रान कि जगह बदलने के कारण N कि ओर कि सीमा पर थोड़ा सकारात्मक आवेश का क्षेत्र बन जाता है और P कि ओर नकरात्मक आवेग का क्षेत्र बन जाता है इन आवेगो के बीच निश्चित रूप से एक विद्युतीय क्षेत्र बन जाएगा ये विधुतीय क्षेत्र आवश्यक Driving Force पैदा करता है |
जब P N Junction पर प्रकाश पड़ता है तो कुछ बढ़ा ही रोचक घटित होता है प्रकाश PV सेल के N क्षेत्र पर पड़ता है और ये भीतर जाकर डिस्प्लेशन रीजन मे पहुंच जाता है डिस्प्लेशन रीजन मे इलेक्ट्रान और छिद्रो कि जोड़े बनाने के लिए फोटोन ऊर्जा पर्याप्त होते है डिस्प्लेशन रीजन मे मौजूद विधुतीय क्षेत्र इलेक्ट्रान और छिद्रो को डिप्लेशन रीजन के बाहर भेजता है हम यह देखते है कि यह N इलेक्ट्रान और P क्षेत्रों मे छिद्रो कि सघनता इतनी अधिक हो जाती है कि N इलेक्ट्रान के बीच काफ़ी अंतर हो जाता है जैसे कि हम इन क्षेत्रों के बीच कोई लोड जोड़ेंगे इलेक्ट्रान लोड के माध्यम से प्रवाहित होने लगेंगे इलेक्ट्रान अपना पथ पूरा करने के बाद फिर से P क्षेत्र के छिद्र से जुड़ जाऐंगे इस तरह सोलर सेल लगातर Direct Current प्रदान करता है एक विशेष सोलर सेल से आप देख सकते है कि ऊपर N परत बहुत ही पतली होती है और भारी मात्रा मे ड्राप कि हुई होती है जब P परत मोटी होती है और बहुत कम ड्राप कि होती है सेल के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए ऐसा किया जाता है यहाँ डिप्लेशन रीजन कि रचना को देखिये आप गौर करेंगे डिप्लेशन रीजनकि मोटाई पिछली स्तिथि कि तुलना मे काफी अधिक है इसका मतलब है प्रकाश पड़ने के कारण इलेक्ट्रान और छिद्रो के जोड़े पिछले स्थिति कि तुलना मे अधिक व्यापक क्षेत्र मे बने है परिणाम स्वरूप PV सेल द्वारा अधिक current पैदा किया जाता है ऊपती परत के पतले होने के कारण एक और फायदा ये भी है कि ऊर्जा अधिक मात्रा मे डिप्लेशन रीजन तक पहुंच पाती है |
आप देख सकते है कि solar panel मे अलग अलग परते है इनमें से एक सेल संयुक्त परत है आपको ये देख कर आश्चर्य होगा कि इन PV सेल को आपस मे कैसा जोड़ा जाता है finger से होकर गुजरने के बाद इलेक्ट्रान BUSBAR मे इकठ्ठे हो जाते है इस सेल कि ऊपरी नकारत्मक सतह अगली सेल कि उलटी सतह मे ताम्बे कि पट्टी द्वारा जोड़ी हुआ होता है
इसमें यहाँ सीरीज कनेक्शन बनता है जब आप इस सीरीज मे जुडी हुई सेल को दूसरी सेल के सीरीज समान्तर जोड़ते है तो solar panel बन जाता है एक अकेली PV सेल करीब 0.5v वोल्टेज पैदा करती है सीरीज कॉम्बोनेशन और सेल का समान्तर कनेक्शन करेंट और वोल्टेज कि मात्रा को उपयोगी सीमा तक बढ़ा देता है सेल के दोनों तरफ EVA चादर कि परत सेल को झटको, कंपनो, नमी व धूल से बचाती है
सोलर पैनल के प्रकार – Type of Solar Panel
- monocristalino Solar Panels
- polycrystalline Solar Panels
दो अलग अलग तरीके के दिखने वाले सोलर पैनल क्यों होते है ,ऐसा आंतरिक क्रिस्टलीय जाली की सरंचना के कारण होता है पॉली क्रिस्टलीय solar panel मे कई क्रिस्टल रैंडम तरीके से लगाए गए होते है अगरसिलिकॉन क्रिस्टलो की रासायनिक प्रकिया को एक कदम आगे बढ़ाया जाये तो पॉली क्रिस्टलीय सेल मोनो क्रिस्टलीय सेल बन जाएगा हालाकि दोनों की संरचना का सिद्धांत एक ही है पर मोनो क्रिस्टलीय सेल उच्च विधुत चलक्त देती है मोनो क्रिस्टलीय सेल मे अनूठा अष्ट कोणीय आकार और बिना कोई बरबादी किये अधिक प्रभावी तरीके से सेल के क्षेत्र का उपयोग करता है लेकिन मोनो क्रिस्टलीय सेलो की लागत अधिक होती है इसलिए इनका प्रयोग अधिक व्यापक रूप से नहीं किया जाता है PV सेल की लागत बहुत है कम होते हुए भी कुल व्यापक ऊर्जा पूर्ति मे सोलर फोटोमेटैलिक का योगदान केवल 1.3% ही है इसका मुख्य कारण इसकी पूंजी लागत और सोलर फोटोमेटैलिक की कार्य क्षमता सीमित होना है जो परागन ऊर्जा से मेल नहीं खाती है घरों की छतो पर लगे solar panel की बैटरी की मदद से ऊर्जा संग्रहित करने का विकल्प होता है और सोलर चार्ज के लिए नियंत्रक लगे होते है
लेकिन सोलर बिजली संयंत्र के लिए आवश्यक भारी संग्रहन क्षमता बनाना संभव नहीं है इसलिए सामान्य तौर पर वे इलेक्ट्रिक ग्रीड प्रणाली से जुड़े होते है जैसे परम्परागत विधुत संयन्त्र के आउट फुट जुड़े होते है पावर इन्वर्टरो की मदद से DC current को AC current मे बदला जाता है और ग्रीड को भेज दिया जाता है | उम्मीद है दोस्तों की आपको सोलर पैनल का वर्किंग मॉडल समझ आया होगा |
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